ये रोग जिसे लग जाये

ना नींद रहे ना चैन रहे , कुछ समझ ना मन को आये !

जब एक झलक की आस लिए दिल नाम वही दोहराये !

 कभी हँसता है कभी रोता है क्या हुआ है इस पागल को !

 इस इश्क का हाल तो जाने वही,  ये रोग जिसे लग जाये !

 

 तड़पता है मचलता है बस तेरी याद करता है !

तुझसे मिलने की कोशिश दिल मेरा दिन-रात करता है!

———————– Shubhashish

18 विचार “ये रोग जिसे लग जाये&rdquo पर;

    1. Dhanyavad Sameer ji

      Thanks Prerana

      dar-asal ye gana maine 3 saal pahle likha tha jab main berojgar tha aur naukari ki talash me bhatak raha tha 😛 aur ek akhbar me album k liye ek adv. nikla tha maine us time 2 din me 3 gaane likhe fir somehow mood change ho gaya aur main gana likhne k baad us producer se milne he nahi gaya ye sher usi ek gaane se hain 🙂

      Gaane aaj bhi isi intjaar me rakha hoon ki kabhi to apni album ….. 🙂

  1. वाह सुभाष जी क्या बात है एक एक रचना लाजवाब है,लगता है बहुत गहरी चोट खायी है आपने तभी इस कदर जज्बात उमड़ रहे हैं बहुत सुन्दर अति उत्तम शब्द नहीं है मेरे पास

  2. कभी हँसता है कभी रोता है क्या हुआ है इस पागल को !

    इस इश्क का हाल तो जाने वही, ये रोग जिसे लग जाये !

    वाह .. वाह क्या बात है
    लाजवाब रचना

    बधाई एवं शुभ कामनाएं

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