क्यों बने हुए हो दीन-हीन,
क्यों मायूसी तुम पे छाई,
क्यों देख के यूँ डर जाते हो,
ख़ुद अपनी ही परछाई|
क्या भूल गए कि कौन हो तुम ,
या भूले अपने अंतर को,
तुम उस पूर्वज के वंसज हो,
जो पी गए सारे समन्दर को|
जीवन में दुःख को सहे बिना,
कौन बड़ा हैं बन पाया,
बिन अग्नि में तपे बिना,
क्या सोना कभी चमक पाया|
जग ने कब उनको पूछा है,
जो तकलीफें गिनते रहते हैं,
होते हैं फूलों में काटें भी,
पर वो काटें ही चुनते रहते हैं|
तुम राणा-शिवा के वंसज हो,
जो माने कभी भी हार नहीं,
वीरगति को प्राप्त हुए,
पर छोड़ी कभी तलवार नहीं|
अब तो छोडो ये मायूसी,
अब तो होश में आओ तुम,
पाने के लिए अपना लक्ष्य,
अब तो जान लगाओ तुम|
आज दिखा दो दुनिया को,
साहस की तुम में कमी नहीं,
हार रहे थे अब तक लेकिन,
अभी लड़ाई थमी नहीं|
हर एक लड़ाई जीतोगे,
आज ही ये संकल्प करो,
अपने न सही औरो के लिए,
संसार का काया-कल्प करो|
अपने पे अगर आजाओ तो,
आंधी में दीप जल जायेंगे,
मन में हो सच्ची लगन अगर,
पत्थर पे फूल खिल जायेंगे|
तो,
क्यों बने हुए हो दीन हीन,
क्यों छाई तुम पे ये मायूसी,
वीर को कैसे सुहा सकती है,
कायर सी ये खामोशी,
………………………. Shubhashish(2003)
i feel energetic. during reading this.
BHAGAT SINGH PANTHI ji kavita ke avlokan ke liye shukriya