संसार के दुःख रूपी विष से हर किसी को है आघात यहाँ,
इस विषरूपी दुःख दैत्य की क्या कोई नहीं है काट यहाँ ?
क्या कुछ भी नहीं है ऐसा जो हर किसी को खुशियाँ दे पाए ?
एक पल के लिए तो कम से कम हर बात भुला के हँस पाए,
आनंद निहित हो उसमे इतना, स्वयं अनंदास्वरुपा हो ,
कोई न वंचित हो जिससे वो सुख-सागर कुछ ऐसा हो,
इन्ही ख्यालो में खोया कुछ उलझा अपनी उलझन में,
हो के मानव चरित्र के अधीन त्रुटी ढूढ़ रहा था भगवन में,
ये सोच ही रहा था की तभी नन्हीं ख़ुशी वहाँ आई,
होठो पर अपने हसीं लिए खिल-खिला कर मुस्काई,
जाने क्या जादू था उसकी हर प्यारी मुस्कान में,
एक बार जो हँस दे फिर से वार दूं अपने प्राण मैं,
उसके होठो की एक हसीं जीवन में उमंग भर देतीं,
नन्हें दातों की श्वेत पंक्तियाँ मन को प्रकाशित कर देतीं,
ले के उसे आलिंगन में माथे पर दिया स्नेह चुम्बन,
खुशिया इतनी मिल गयी मानो नीचे हो गया नील-गगन,
ईश्वर के इस सुख रूपी रस से तृप्त हो गया मेरा मन,
बन कर क्षमाप्रार्थी स्वयं ईश्वर को किया शतबार नमन
………………………… Shubhashish(2004)