- मेरी खामोशियाँ अब भी उससे उम्मीद किए बैठी है
जो मेरी आवाज़ो को भी अनसुना कर दिया करता है
………………………………… Shubhashish
- बेहतर है खुद मे ही घुट के फना हो जाऊं मैं
कहीं ये दर्द बाहर आया तो कयामत होगी
………………………………… Shubhashish
- ऐ गजल
बस एक तूही तो है जिससे मैं शिकायत करता हूँ
बाकी दुनिया तो बहुत है मेरी अपनो जैसी
………………………………… Shubhashish
- भली है लाश जो जल्द ही जल जानी है
बुरी तो होती हैं बिना नींद की आँखे
………………………………… Shubhashish
- कुसूर किसका कहु इस बेबसी को मैं
कि तू डूब रहा है मगर प्यासा प्यासा
………………………………… Shubhashish
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Shubhashish Pandey 'Aalsi' द्वारा प्रकाशित
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