भटकाव – The Dilemma

जाने कहाँ खो गयी है शक्ति धैर्य विवेक की,
ना कामना जीवन की है ना मृत्यु के अभिषेक की,

जीवन की इस रुग्ड़ता से व्यथित हो गया घोर मैं,
सूझता नहीं लक्ष्य को लक्षित करूं किस ओर मैं,

सोचता हूँ की क्या मैं भी ईश्वर का ही अंश हूँ,
या इस धरा को व्यथित करता कोई विषदंश हूँ,

किंकर्त्वयविमुढ़ सा हूँ बहुत विक्षिप्त मैं,
पर इस आहत ह्रदय को करूं कैसे तृप्त मैं,

मॅन की इस अवस्था से आत्मा भी विद्ऋण है,
जीवन की जीवनी शक्ति भी लगता अब बहुत क्षीण हैं,

ना कोई उत्साह है ना कोई है जिज्ञासा,
कल का दिन अच्छा आएगा इसकी भी नहीं तनिक आशा,

जाने किस दिशा ले जा रही जीवन की ये नाव है,
मार्ग है ये ईश्वर का या स्वयं से भटकाव है|                 
 
…………………………. Shubhashish(2004) 

2 विचार “भटकाव – The Dilemma&rdquo पर;

  1. जाने कहाँ खो गयी है शक्ति धैर्य विवेक की,
    ना कामना जीवन की है ना मृत्यु के अभिषेक की,

    जीवन की इस रुग्ड़ता से व्यथित हो गया घोर मैं,
    सूझता नहीं लक्ष्य को लक्षित करूं किस ओर मैं,

    …….
    मॅन की इस अवस्था से आत्मा भी विद्ऋण है,
    जीवन की जीवनी शक्ति भी लगता अब बहुत क्षीण हैं,

    .
    jivan ki moh-maya mein aadhe fase man ka sundar chritran hai , jivan ki uljhan hai ya uljhan sa jivan hai.

    waah bahut achi kavita hai
    badhaai savikaar kare

    saadar
    hemjyotsana

टिप्पणी करे