मजबूरीयों में बधे

अश्क भी अब सहमें से पलकों मे छुपे रहते हैं,
मेरी तरह ये भी तनहाई और घुटन सहते हैं,
डरतें है कि कहीं देख ना ले इन्हे कोई,
निकलना चाहते हैं पर मजबूरीयों में बधे रहते हैं |
…………………………………..Shubhashish(1999)

टिप्पणी करे