कमबख्त! अजीब खेल है ये इश्क और दीवानगी का,
चैन उम्मीद करते हैं खुद को कांटे चुभोने के बाद,
क्या चला गया ये सोचना तो फिजूल ही था,
क्या रह गया, ये सोचा नहीं तुझे खोने के बाद,
तबसे ना देखा तुझे ना तेरा नाम जुबान पे आने दिया,
पर क्यों नहीं काबू रहता खुद पे सोने के बाद,
बेशक लोग देते होंगे हसने को तब्बजो,
पर हमें सुकून आता है थोडा रोने के बाद!
………………………. Shubhashish