गोलियों वाली स्लेट और चुने की खड़िया
मचल जाता था देख मन चूरन की पुडिया
कभी खेलते थे लूडो कभी छुपा छुपायी
कभी प्लास्टिक किचेन सेट, कभी गुड्डे गुडिया
बांस के ऊपर लपेट लाता, लटपटी मिठाई वाला
जादू लगता जब वो बनाये उससे घडी, बिच्छू, माला
खुद खायी भी और दीदी को खिलाते आईसक्रीम
फिर बताते तुम्हारा ही पैसा था गद्दे के नीचे वाला
बिजली कटने पे भी हम जश्न मनाया करते थे
छत पे जुट अन्ताक्षरी के गाने गाया करते थे
किसी का घर बनने को जब गिरता था बालू
रेत के घर बना उसे खूब सजाया करते थे
क्लास टीचर मेरी ही कांपी झाकती थी
जाने क्यों हर रोज वो मुझी को डांटती थी
स्कूल जाना तो कभी मुझको मंजूर नहीं था
पर पापा के आगे मेरी रूह कापतीं थी
स्कूल न जाने के १०० बहाने फ्लॉप हो जाते थे
जब मेरे सामने गुस्से में खड़े मेरे बाप हो जाते थे
पर स्कूल वालों से हमें कभी डरना नहीं आया
क्या क्या न हुआ पर होम-वर्क कभी करना नहीं आया
उनके लिए हम कितने जतन कर कर के मर गए
पर किसी को हमारी लिखावट कभी पढना नहीं आया
आँखे रंगोली से खुलती फिर चाय की प्याली
अक्सर आती थी सन्डे को जिलेबी गर्म वाली
राम-लक्ष्मण के दर्शन को लग जाता वहां मेला
टीवी हो जिसके घर में छोटी या बड़ी वाली
अलिफ़ लैला सिन्ध्बाद और तिलस्मी जंजिरा
सन्डे होता था हमारी खुशियों का जखीरा
विक्रम बेताल और वो दादा दादी की कहानियां
प्यारा बहुत था हमे मोगली और बगीरा
एक रुपया मुठ्ठी में आया नहीं की
सारी दुनिया की खुशियाँ मुठ्ठी में हो जाती
क्या नहीं खरीद सकता हूँ मैं इससे बोलो
आज सोच के ही कितनी हसी है आती
ऐसा नहीं की पढने में न हो इंटरेस्ट मेरा
कई किताबों का घर में लगा रहता था डेरा
पिंकी, बिल्लू, चंपक भी घर आते जाते
चंदामामा और नंदन का यहीं था बसेरा
पर नागराज था हमको जान से प्यारा
सुपर कमांडो ध्रुव भी था अच्छा दोस्त हमारा
बांकेलाल की चाल हमेशा पड़ती थी उल्टी
डोगा से कांपता था रात को अंडरवर्ल्ड सारा
दाल में काला सबको नज़र आने लगा था
वक़्त किताबों में मैं कैसे बिताने लगा था
बुक में छुपा कामिक्स पढता जब पकड़ा गया मैं
दिन में तारे दिखे और अँधेरा छाने लगा था
बहुत तेज है चाचा चौधरी का दिमाग पढ़ा था
फट जाये ज्वालामुखी साबू का गुस्सा इतना बड़ा था
पर पापा के गुस्से की हकीक़त कुछ यूँ सामने आई
टुकड़े टुकड़े हो नागराज ज़मीन पे बिखरा पड़ा था
स्कुल में हालत मेरी कुछ हो गयी थी ऐसी
मार-मार कर बिगड़ी मशीन का पुर्जा बना देते थे
माँ भेजती थी की बेटा पढ़ लिख के इंसान बन जायेगा
और वो थे की हर रोज मुझे मुर्गा बना देते थे
जब पापा की जेब से आखरी बार १० की नोट उड़ाई
लगा ‘आज तो गए हम’, यूँ बात सबके सामने आई
पापा की ख़ामोशी और माँ के आंसू ने दर्द इतना दिया कि
रोया बहुत माँ से लग के, और कसमें भी खायी
आवारा कुत्ते के बच्चों को घर में ला के मैं छुपाता
रोटी दूध खिला-खिला कर खूब प्यार उसपे लुटाता
पर आधी रात को पापा तब मेरी खबर अच्छे से लेते
जब वो कुं-कुं-कुं-कुं चिल्ला कर, पूरी दुनिया को जगाता
जब से वो आई थी बस ख़याल उसी का रहता था
साथ ही आता जाता था, साथ ही उसके रहता था
जिसके आगे दुनियां की सारी चीज़ें बेकार थी
सच कहता हूँ वो मेरी साईकिल मेरा पहला प्यार थी
क्रिकेट में इंडिया की हालत जब बिगड़ने लगती
टीवी के बाजु भगवान की फोटो सजने लगती
सचिन के आउट होते ही खड़ा हो जाता था संकट
फिर अपनी गली क्रिकेट वापस चलने लगती
मैदान हो या छत, कोई जगह नहीं बच पाती
क्रिकेट तो क्लास में किताब से भी खेली जाती
पर जाने क्या प्यार था बाल को सड़क की नाली से
हर दुसरे शाट पे वो कमबख्त नाली में ही जाती
एक नयी डगर पे ज़िन्दगी जाने लगी थी
बात हमको भी समझ अब आने लगी थी
बचपन तब ख़तम होता लगने लगा जब
किसी से आँखे अक्सर टकराने लगी थी
जैसे भी हैं, वो हर लम्हे हैं मुझको बहुत प्यारे
माँ पिताजी को शत शत बार नमन
बस इतना ही था कहना ,यही कहानी है मेरी
ये था मैं और “ऐसा था मेरा बचपन”
……………….. Shubhashish
I love you Mom. I love you Dad.
हलचलों से बढ़ चला बपचन,
अनुभवों के संग पला बचपन।
Thanks Shubhashish.. for reviving those yester years memories once again…!! Sooooo Nostalgic…
dost maaza aagaya padhke… purane din ek baar wapas se nazaron ke saamne se guajar gaye…
bahut badhiyan kavita hai…
Very nice poem. poore poem ka koi bhee part aisa nahi laga jo hum logon ki life me naa hua ho. Specially wo kutte ke bacchon wali line. shayad sabke bachpan me ek na ek baar ye ghatna zaroor hote hai.
And i do agree that my first love is my cycle 🙂 .
@Praveen ji in panktiyon ke liye dhanyavad.
@Tanvi Thanks 🙂
@Anshul Sir,Ashish
Dhanyvad.sahi kaha Ashish ji bachpan sabka lag bhag ek sa he hota hai. Aur ye saare meethi yaaden aaj bhi yaad aakar muskurane ko majboor kar detin hain 🙂
bachpan ki yaadei.n taaza ho gayii.n…….kuch aisa hi tha mera bhi bachpan
shukriya arghwan ji
behtareen hai dost!
your writing is so addictive to read.
bahut bahut shukriya pushkar ji
Awesome
shukriya arpit ji
I dont understand hindi but when i asked someone to translate it.. it was like….. thank u sir.
@Tamara Thank You 🙂
बहुत ही शानदार कविता है , बचपन की भूली हुई यादो को ताजा करने के लिये धन्यवाद