1)
सवाल….
जाने कितने सवाल …..
अचानक ही पुरानी यादों में बहते जाते,
और एक के बाद एक यादों में खोते जाते…
फिर आ खड़े होते वही सवाल….
उसने ऐसा क्यों किया …
अब वो कैसा होगा …
क्या वो खुश होगा …
क्या उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ सही होगया होगा …
क्या उसे कभी मेरी याद आती होगी ……
क्या उसने कभी मेरा जिक्र किया होगा ……
जाने कितने सवाल …
जिनके जवाब शायद कोई मायने ही नहीं रखते
क्युकी भले ही जवाब कुछ भी हो ….
ये जवाब तो अब सिर्फ तकलीफ बढ़ा सकते हैं…
जनता हूँ मैं भी …..
पर फिर भी जाने क्यों ख़तम नहीं होते …..
ये सवाल……….
Shubhashish
2)
कोई शिकवा – शिकायत तो नहीं बस कुछ सवालों का पुलिंदा है
कुछ सवाल तुझसे करने हैं कुछ खुदा से
यूँ तो तुमसे फिर मिलने की उम्मीद नहीं
और ये सवाल भी अब बस जेहन में ही रह जाने हैं
पर अब ज़िन्दगी भी कुछ ज्यादा ही लम्बी लगती है
और खुदा से मिलना भी अब आसान नहीं लगता
खुदा को भी ये इल्म तो है ही
की दिन-ऐ-आखरत पे जवाब उसे भी देने होंगे
पर शायद वो भी अब तक तैयार नहीं मेरे सवालों का जवाब देने के लिए
वो भी कतराता है मुझसे नज़र मिलाने में
मौत दे के मुझे पास बुलाने में
………………..Shubhashish
Jaisa ki pehle hi kaha tha… the poem well deserves to be here on this blog…!
Na jaane kitne saare logo ke mun ki baat hogi ye.. good that u expressed it..! Nice piece of work… 🙂
Another masterpiece from Subhashish ji…
chand shabdon mein sab kuch byan kar diya… wo sawal jo hamesha humare jehan ko kuredte rehte hain !!!
dhanyavad Tanvi ji
dhanyavad ravindra bhai