यूँ हीं…. (3)


  1. मेरी खामोशियाँ अब भी उससे उम्मीद किए बैठी है
    जो मेरी आवाज़ो को भी अनसुना कर दिया करता है
    ………………………………… Shubhashish
  2. बेहतर है खुद मे ही घुट के फना हो जाऊं मैं
    कहीं ये दर्द बाहर आया तो कयामत होगी
    ………………………………… Shubhashish
  3. ऐ गजल
    बस एक तूही तो है जिससे मैं शिकायत करता हूँ
    बाकी दुनिया तो बहुत है मेरी अपनो जैसी
    ………………………………… Shubhashish
  4. भली है लाश जो जल्द ही जल जानी है
    बुरी तो होती हैं बिना नींद की आँखे
    ………………………………… Shubhashish
  5. कुसूर किसका कहु इस बेबसी को मैं
    कि तू डूब रहा है मगर प्यासा प्यासा
    ………………………………… Shubhashish

मैगी – The Bachelor’s Lifeline


Students-Hostellers का रखती ख्याल है Maggi
Bachelors के लिए तो कसम से बवाल है Maggi

Breakfast, Lunch या dinner खाओ जब भी जी चाहे
Utilization की जीती जागती मिसाल है Maggi

Egg, Chiken, Paneer, veg कितने रूप हैं इसके
मनभावन स्वाद की एक तरण-ताल है Maggi

महगाई का जवाब तो नहीं सरकार के भी पास
खुद महगाई के लिए बन गयी सवाल है Maggi

कुछ और ना हो इसका स्टॉक में होना जरुरी है
अपने लिए तो जैसे चावल-दाल है Maggi

मियां-बीवी जो दोनों लौटे थक के ऑफिस से
फिर dinner में अक्सर होती इस्तेमाल है Maggi

कभी था डर बीवी रूठी तो सोना पड़ेगा भूखे ही
अबला पुरुषों के लिए बन गयी ढाल है Maggi

टेडी-मेडी, सुखी-गीली फिर भी स्वाद में डूबी
बयां करती है क्या ज़िन्दगी का हाल है Maggi

गुजारी हमने कैसे ज़िन्दगी, मत पूछ ‘आलसी’
कि मेरी ज़िन्दगी के भी कई साल हैं Maggi

……………………..By Shubhashish Pandey ‘आलसी’

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खुशनसीब …… या बदनसीब….


वो अक्सर मेरे पास मुस्कुराते हुए आता
और बड़े गुमान से बताता
यार !
मुझे तो कभी हुआ ही नहीं
‘ये प्यार’ ….
एक दिन मुझसे भी जवाब निकल ही गया
जाने तुझे क्या कहना चाहिए

खुशनसीब ……
की तुझे कभी
गुजरना नहीं पड़ा
दर्द के उस सैलाब से
जो कई बार दे जाता है उम्र भर की उदासी

या

बदनसीब….
की तुझे कभी
एहसास ही नहीं हुआ
दुनिया की उस सबसे खुबसूरत चीज़ का
जिसके लिए लोग
जानते हुए भी
हर दर्द को उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं ………
सिर्फ उस एहसास के लिए …
वही एहसास …
जो इन्सान को…. इन्सान बनाता है
……………. Shubhashish

ख्वाहिश


बेसबब जूझना थकना और फिर से खुद से लड़ जाना
टूट जाने की हद तक चुप-चाप हर गम को सह जाना
तब होती है उसकी बाँहों में बिखर जाने की वो ज़िन्दगी सी तलब
पर आखिरी ख्वाहिश की तरह उस ख्वाहिश का भी आखिर तक रह जाना
…………………………… Shubhashish

बला का नाम है बीवी


जीवन में ढलती खुशियों की शाम है बीवी
जो पढ़ी नहीं सिर्फ सुनी जाये वो कलाम है बीवी

सर चढ़ गयी तो फिर कुछ भी अपने बस में नहीं
ये जान के भी जो पी जाये वो जाम है बीवी

क्यों मारी पैर पे कुल्हाड़ी जेहन में उनके है अब
जो सोचते थे चक्कर काटने का इनाम है बीवी

अरेंज मर्डर हुआ हो या इश्क में खुद ही चढ़ गए सूली
जो सब को झेलनी, ऐसी उलझनों आम है बीवी

सजा तय है जो जुर्म किया हो न किया हो
रोयी नहीं की फिर क्या सबूत क्या इलज़ाम है बीवी

माँ की कहानियों में ही होती थी सावित्री, दमयंती
मगर अब शहरी चका-चौंध की गुलाम है बीवी

क्या करो, ओढो, पहनो ये बताने की जुर्रत किसको
पर क्या ये खर्चे मेरे पसीने का दाम है बीवी

माँ-बाप पीछे पड़े हैं कैसे समझाऊ उन्हें
बदलते दौर में किस बला का नाम है बीवी

कुंवारा हूँ सो कह लूं आज जो कुछ भी कहना है
कल तो लिखना ही है खुदा का पैगाम है बीवी
…………………………. Shubhashish

Note: ये सिर्फ हास्य के लिए लिखी गयी कविता है! कृपया इसे किसी अन्य दृष्टी से न देखें !
कहीं से भी इस कविता का उद्देश्य नारी का उपहास करना नही है! फिर भी यदि किसी की भावनाओं को ठेस पहुची हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ !
– शुभाशीष

सवाल….


1)
सवाल….
जाने कितने सवाल …..
अचानक ही पुरानी यादों में बहते जाते,
और एक के बाद एक यादों में खोते जाते…
फिर आ खड़े होते वही सवाल….
उसने ऐसा क्यों किया …
अब वो कैसा होगा …
क्या वो खुश होगा …
क्या उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ सही होगया होगा …
क्या उसे कभी मेरी याद आती होगी ……
क्या उसने कभी मेरा जिक्र किया होगा ……
जाने कितने सवाल …
जिनके जवाब शायद कोई मायने ही नहीं रखते
क्युकी भले ही जवाब कुछ भी हो ….
ये जवाब तो अब सिर्फ तकलीफ बढ़ा सकते हैं…
जनता हूँ मैं भी …..
पर फिर भी जाने क्यों ख़तम नहीं होते …..
ये सवाल……….
Shubhashish

2)
कोई शिकवा – शिकायत तो नहीं बस कुछ सवालों का पुलिंदा है
कुछ सवाल तुझसे करने हैं कुछ खुदा से
यूँ तो तुमसे फिर मिलने की उम्मीद नहीं
और ये सवाल भी अब बस जेहन में ही रह जाने हैं
पर अब ज़िन्दगी भी कुछ ज्यादा ही लम्बी लगती है
और खुदा से मिलना भी अब आसान नहीं लगता
खुदा को भी ये इल्म तो है ही
की दिन-ऐ-आखरत पे जवाब उसे भी देने होंगे
पर शायद वो भी अब तक तैयार नहीं मेरे सवालों का जवाब देने के लिए
वो भी कतराता है मुझसे नज़र मिलाने में
मौत दे के मुझे पास बुलाने में
………………..Shubhashish

मर्यादा और प्रेम


मर्यादा और प्रेम सिखाती घडी की दो सुइयां
प्रेम में एक दुसरे से मिलने को चलती रहतीं हैं,
पास आती हैं, एक पल के लिए एक हो जाती हैं,
पर मर्यादा निभाने को फिर से चल पड़ती हैं,
इस वादे के साथ की फिर मिलेंगे ……
….. मर्यादा और प्रेम सिखाती घडी की दो सुइयां
Shubhashish

किसी ने अल्लाह कह के मारा किसी ने राम कह के मारा


किसी ने अल्लाह कह के मारा किसी ने राम कह के मारा
जो बच गए इससे उन्हें सद्दाम कह के मारा
जो आये थे घर छोड़ शहर दो रोटी कमाने को
“क्यों छिनने आये हो हमारा काम” कह के मारा
कहते हैं जिससे बड़ी नहीं कोई और इबादत दुनिया में
हाँ इसी इश्क करने की खातिर कितनो को सरेआम कर के मारा
 ………………………………….. Shubhashish