हाँ, अब हम खामोश हैं…..


इस कदर चाहा है तुझ कि खुद प्यार से महरूम हो गये,
तुम्हारे पास आने के लिये हम खुद से दूर हो गये,
पूछते हो कि आज हम खामोश क्यों हैं कुछ बोलते क्यों नहीं ?
क्या करें, तेरी ठोकरों से टूट के हम चूर-चूर हो गये|
………………………………Shubhashish(2004)

भटकाव – The Dilemma


जाने कहाँ खो गयी है शक्ति धैर्य विवेक की,
ना कामना जीवन की है ना मृत्यु के अभिषेक की,

जीवन की इस रुग्ड़ता से व्यथित हो गया घोर मैं,
सूझता नहीं लक्ष्य को लक्षित करूं किस ओर मैं,

सोचता हूँ की क्या मैं भी ईश्वर का ही अंश हूँ,
या इस धरा को व्यथित करता कोई विषदंश हूँ,

किंकर्त्वयविमुढ़ सा हूँ बहुत विक्षिप्त मैं,
पर इस आहत ह्रदय को करूं कैसे तृप्त मैं,

मॅन की इस अवस्था से आत्मा भी विद्ऋण है,
जीवन की जीवनी शक्ति भी लगता अब बहुत क्षीण हैं,

ना कोई उत्साह है ना कोई है जिज्ञासा,
कल का दिन अच्छा आएगा इसकी भी नहीं तनिक आशा,

जाने किस दिशा ले जा रही जीवन की ये नाव है,
मार्ग है ये ईश्वर का या स्वयं से भटकाव है|                 
 
…………………………. Shubhashish(2004)