कैसा दौर – In the age of Corona
यूँ हीं…. (3)
- मेरी खामोशियाँ अब भी उससे उम्मीद किए बैठी है
जो मेरी आवाज़ो को भी अनसुना कर दिया करता है
………………………………… Shubhashish - बेहतर है खुद मे ही घुट के फना हो जाऊं मैं
कहीं ये दर्द बाहर आया तो कयामत होगी
………………………………… Shubhashish - ऐ गजल
बस एक तूही तो है जिससे मैं शिकायत करता हूँ
बाकी दुनिया तो बहुत है मेरी अपनो जैसी
………………………………… Shubhashish - भली है लाश जो जल्द ही जल जानी है
बुरी तो होती हैं बिना नींद की आँखे
………………………………… Shubhashish - कुसूर किसका कहु इस बेबसी को मैं
कि तू डूब रहा है मगर प्यासा प्यासा
………………………………… Shubhashish
ज़ज्बात
अड़ा बैठा है वो मुझसे मेरे ज़ज्बात सुनने को
नहीं है मानता जिद्दी है कितना सख्त कितना है
बड़ी मुश्किल है, गर बयां करे भी तो करें कैसे
ना तो लब्ज़ इतने हैं ना तो वक़्त इतना है
……………………………. Shubhashish
यूँ हीं…. (2)
यूँ हीं….
…..खोना
मैगी – The Bachelor’s Lifeline
Students-Hostellers का रखती ख्याल है Maggi
Bachelors के लिए तो कसम से बवाल है Maggi
Breakfast, Lunch या dinner खाओ जब भी जी चाहे
Utilization की जीती जागती मिसाल है Maggi
Egg, Chiken, Paneer, veg कितने रूप हैं इसके
मनभावन स्वाद की एक तरण-ताल है Maggi
महगाई का जवाब तो नहीं सरकार के भी पास
खुद महगाई के लिए बन गयी सवाल है Maggi
कुछ और ना हो इसका स्टॉक में होना जरुरी है
अपने लिए तो जैसे चावल-दाल है Maggi
मियां-बीवी जो दोनों लौटे थक के ऑफिस से
फिर dinner में अक्सर होती इस्तेमाल है Maggi
कभी था डर बीवी रूठी तो सोना पड़ेगा भूखे ही
अबला पुरुषों के लिए बन गयी ढाल है Maggi
टेडी-मेडी, सुखी-गीली फिर भी स्वाद में डूबी
बयां करती है क्या ज़िन्दगी का हाल है Maggi
गुजारी हमने कैसे ज़िन्दगी, मत पूछ ‘आलसी’
कि मेरी ज़िन्दगी के भी कई साल हैं Maggi
……………………..By Shubhashish Pandey ‘आलसी’
खुशनसीब …… या बदनसीब….
वो अक्सर मेरे पास मुस्कुराते हुए आता
और बड़े गुमान से बताता
यार !
मुझे तो कभी हुआ ही नहीं
‘ये प्यार’ ….
एक दिन मुझसे भी जवाब निकल ही गया
जाने तुझे क्या कहना चाहिए
खुशनसीब ……
की तुझे कभी
गुजरना नहीं पड़ा
दर्द के उस सैलाब से
जो कई बार दे जाता है उम्र भर की उदासी
या
बदनसीब….
की तुझे कभी
एहसास ही नहीं हुआ
दुनिया की उस सबसे खुबसूरत चीज़ का
जिसके लिए लोग
जानते हुए भी
हर दर्द को उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं ………
सिर्फ उस एहसास के लिए …
वही एहसास …
जो इन्सान को…. इन्सान बनाता है
……………. Shubhashish